भारत के औद्योगिक निति की विशेषताओं का वर्णन |
प्राचीन काल से ही भारत कृषी प्रधान देश रहा है , पारंभ में जब मानव की आवश्यक्ताएं सिमित थी तब उद्योग धंधो का कोई महत्व नहीं था , धीरे-धीरे मनुष्य विवेकशील हुआ तब उनकी आवश्यकताएँ भी बहती गई परिणाम स्वरुप लोगों में जरुरत का आभास हुआ तथा उन्हें महसूस हुआ आर्थिक उन्नति के लिये उद्योग धंधे का होना अत्यंत आश्वयक है | इस कारण उद्योग धंधों के अस्थापना पर ध्यान दिया जाने लगा | बहुत से उद्योग ऐसे होते है जिनके लिये कच्चे माल की आपूर्ति कृषि द्वारा ही सम्भब है, इनमें प्रमुख है | गन्ना उद्योग , जुट उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग इनके लिए क्रमशः गन्ना, जुट एवं कपास प्रायः कृषि से ही प्राप्त होती है , परंतु बहुत से ऐसे उद्योग है जिनके लिए कच्चे मॉल कृषि से प्राप्त नहीं होती है , इनमे प्रमुख हैं सीमेंट उद्योग , लौह एवं इस्पात उद्योग इत्यादी | आजादी के बाद 1950-60 के दसक में भारत में तीन प्रमुख लौह इस्पात उद्योगों की स्थापना की गई | इनका नाम क्रमशः टिस्को,मिस्को, ईस्कों नाम रखा गया जो क्रमशः टाटा जमशेदपुर, मैसूर एवं दिल्ली में स्थापित की गई | इसका पूरा नाम टाटा आयरन एंड स्टील कम्पनी जमशेदपुर, मैसूर आयरन एंड स्टील कम्पनी मैशुर कर्नाटक एवं इंडियन आयरन एंड स्टील कम्पनी दिल्ली |
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प्रकार कम्पनियाँ बहुत से उत्पात जो हम विदेशो पर निर्भर थे, भारतीये कम्पनियाँ
खुद उत्पादन करने लगी, इसका परिणाम यह हुआ की बहुत से उत्पाद भारत में ही होने लगा
जिससे विदेशी निर्भरता समाप्त हो गई है, तथा वस्तुओं का भी उत्पादन भारत में होने
लगा है | यह सब भारत के औद्योगिकी के कारन का परिणाम है | 1995 से विश्व व्यापार संगठन पर भारत ने समझौता किया है | तब से बहुत सी विदेशी
कम्पनियाँ भी भारत में उद्योग लगाने लगे हैं | जिसका परिणाम यह हुआ की भारत में
औद्योगिकरन तेजी से बढ़ा है, जिससे रोजगार के अवसर भी बढे और इससे युवाओ एवं
युवतियों को बरे पैमाने पर रोजगार दिए गये है, इसी तरह से औद्योगिकरन को बढ़ावा
दिया जाता रहा तो वह दीन दूर नहीं जब भारत
भी पच्छमी देशों की तरह औद्योगिकीकरण में विकसित होगा |


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