पूँजीकरण क्या है ?
पूँजीकरण का अर्थ व्यवसाय में पूँजी को एकीकृत या पूँजी के छोटे-छोटे टूकारे को इकट्ठा करने से है | बिना पूंजी के व्यवसाय का कल्पना भी नहीं किया जा सकता है जिस प्रकार रक्त धमनियों के बगैर शरीर का कल्पना नहीं किया जा सकता और रक्त धमनियों में रक्त का होना भी आवश्यक है | रक्त के बगैर रक्त धमनियों का कोई उपयोग नहीं हैं, उसी प्रकार पूँजीकरण व्यवसाय में पूँजी का होना भी आवश्यक है | जिस प्रकार ह्रदय का काम खून को साफ करने का होता है, ह्रदय गंदे हुये खून को साफ कर शारीर को अच्छा और स्वस्थ करते हैं | उसी प्रकार पूँजीकरण में व्यावसाय के लिए तीन प्रकार के पूँजी की आवश्यकता होती है |
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1. इसका अर्थ खरीदे हुए माल से है, जो आपके पास व्यवसाय शुरु करने से पहले होना चाहिए |
2. इसका अर्थ उधार पर बेचे गये माल से है, हर व्यवसायी को उधार पर माल बेचेने का साहस होना भी काफी आवश्यक है |
3. इसका अर्थ पूँजी के चालू अवस्था से है, इसमें व्यवसाय को उस पूँजी के माध्यम से आगे बढाया जाता है | इससे माल की खरीद बिक्री की जाती है |
जिस व्यवसाय के पास तीनों तरह के पूँजी होती है वो
व्यवसाय हमेसा चलता रहेगा और ऐसा होने के लिए व्यवसायी को साहसी होना आवश्यक है |
जिन व्यवसायी को इन पूँजी की कमी रहेगी
उनका व्यवसाय ज्यादा तेजी से विकास नहीं कर सकता है | वो व्यवसाय रुक-रुक कार ही
चलेगी और ऐसे व्यवसायी को असफल होने की सम्भावना भी अधीक होती है | व्यवसायी अपने
व्यवसाय से ज्यादा लाभ कमाने में सफल नहीं हो पते हैं | जीस प्रकार शारीर में नए
रक्त कोशिका नहीं बनने पर शारीर कई एक बीमारीयों से घिर जाता है | उसी प्रकार
व्यवसाय में चालू पूँजी नहीं रहने पर व्यावसाये बीमारी ग्रस्त हो जाता है या होने
की सम्भावना रहती है |

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